फार्मेसी की फील्ड में हैं करियर के ये ढेरों अवसर, जानें
कोर्सेज और एलिजिबिलटी (eligible to corce)
डिप्लोमा इन फार्मेसी (डीफार्मा): यह दो वर्षीय (चार सेमेस्टर का) डिप्लोमा कोर्स है। इसके लिए स्टूडेंट्स को साइंस स्ट्रीम में 12वीं पास होना चाहिए।
✓ अन्य कोर्स (other corce):-
इनके अलावा फार्मा रिसर्च (pharmacy research) में स्पेशलाइजेशन के लिए कैंडिडेट्स एनआईपीईआर यानी नैशनल इंस्टिटयूट ऑफ फार्मा एजुकेशन ऐंड रिसर्च जैसे संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं। पीजी डिप्लोमा इन फार्मासूटिकल एवं हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, अडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एवं पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी हैं जिनकी अवधि छह माह से एक वर्ष के बीच है। इनमें प्रवेश के लिए एलिजिबिलटी बीएससी, बीफार्मा अथवा डीफार्मा (कोर्स के अनुसार) है।
✓ स्कोप (scope):-
✓ फार्मासूटिकल्स फील्ड में करियर ऑप्शंस
रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट: फार्मासूटिकल्स के क्षेत्र का दायरा भी काफी व्यापक है। यहां नई-नई दवाइयों की खोज व विकास संबंधी कार्य किया जा सकता है। आरऐंडडी क्षेत्र को जेनेरिक उत्पादों के विकास, ऐनालिटिकल आरऐंडडी, एपीआई (ऐक्टिव फार्मासूटिकल इन्ग्रेडिएंट्स) या बल्क ड्रग आरऐंडडी जैसी श्रेणियों में बांटा जा सकता हैं। इन सबका अपना सुपर-स्पेशलाइजेशन है।
✓ ड्रग मैन्युफैक्चरिंग (drugs manufacture):-
यह इस फील्ड की अहम शाखा है। इस क्षेत्र में मॉलिक्युलर बायॉलजिस्ट, फार्मेकॉलजिस्ट, टॉक्सिकॉलजिस्ट या मेडिकल इंवेस्टिगेटर बन सकते हैं। मॉलिक्युलर बायॉलजिस्ट जीन संरचना और मेडिकल व ड्रग रिसर्च में प्रोटीन के इस्तेमाल का अध्ययन (study) करता है। फार्मेकॉलजिस्ट इंसान के अंगों व ऊतकों पर दवाइयों के प्रभाव का अध्ययन करता है। टॉक्सिकॉलजिस्ट दवाओं के नेगेटिव इफेक्ट को मापने के लिए टेस्टिंग करता है। मेडिकल इंवेस्टिगेटर नई दवाइयों के विकास व टेस्टिंग की प्रक्रिया से जुड़ा होता है।
✓ फार्मासिस्ट (pharmacists
हॉस्पिटल फार्मासिस्ट्स पर medicine और चिकित्सा संबंधी अन्य सहायक सामग्रियों के भंडारण, स्टॉकिंग और वितरण का जिम्मा होता है, जबकि रिटेल (retail) सेक्टर में फार्मासिस्ट को एक बिजनेस मैनेजर की तरह काम करते हुए दवा संबंधी कारोबार चलाने में समर्थ होना चाहिए।
✓ क्लिनिकल रिसर्च:-
इसके तहत नई लॉन्च medicine के बारे में रिसर्च होती है कि वह कितनी सुरक्षित और असरदार है। इसके लिए क्लिनिकल ट्रॉयल होता है। देश में कई विदेशी कंपनियां क्लिनिकल रिसर्च के लिए आ रही हैं। दवाइयों की स्क्रीनिंग संबंधी काम में नई दवाओं या फॉर्मुलेशन का पशु मॉडलों पर परीक्षण करना या क्लिनिकल रिसर्च करना शामिल है।
✓ क्वॉलिटी कंट्रोल (quality control)
Pharmacutical इंडस्ट्री का यह एक अहम कार्य है। नई दवाओं (new medical) के संबंध में अनुसंधान व विकास के अलावा यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत होती है कि इन दवाइयों के जो नतीजे बताए जा रहे हैं, वे सुरक्षित, स्थायी और आशा के अनुरूप हैं।
✓ Branding and selling
Pharmacy की डिग्री के बाद students ड्रग्स व मेडिसिन के सेल्स ऐंड मार्केटिंग में करियर बना सकता है। मार्केटिंग (marketing) प्रफेशनल्स उत्पाद (product) की बिक्री के अलावा बाजार की प्रतिस्पर्धा पर भी नजर रखते हैं कि किस प्रॉडक्ट के लिए बाजार में ज्यादा संभावनाएं हैं, जिसके मुताबिक प्लानिंग की जाती है।
✓ मेडिकल इन्वेस्टिगेटर:-
यह नई दवाइयों (medicine) के टेस्टिंग व डिवेलपमेंट की प्रक्रिया से रिलेटिड है। हॉस्पिटल फार्मासिस्ट पर मेडिसिन व अन्य मेडिकल रिलेटिड सामग्रियों के स्टॉकिंग और डिस्ट्रिब्यूशन का जिम्मा होता है। रिटेल सेक्टर में फार्मासिस्ट को बिजनस मैनेजर की तरह काम करते हुए दवा (medicine) संबंधी कारोबार करना होता है।
✓ रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट (register pharmacists)
विदेशों में pharmacists को रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट कहा जाता है। जिस तरह डॉक्टरों को प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है, उसी तरह इन्हें भी फार्मेसी में प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस चाहिए। उन्हें रजिस्ट्रेशन (registration) के लिए एक टेस्ट पास (pass) करना होता है। फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) ने इस विषय में ट्रेनिंग के लिए ‘pharma D’ नामक एक छह साल का कोर्स शुरू किया है।